Hansal Mehta : फिल्ममेकर हंसल मेहता ने हाल ही में बांग्लादेश में न्याय की जीत के बारे में अपनी पुरानी यादें साझा की हैं। उन्होंने अपनी फिल्म ‘फराज’ को लेकर मिलने वाली धमकियों का जिक्र किया, जो ढाका में हुए एक आतंकवादी हमले पर आधारित है। यह फिल्म बांग्लादेश में अब भी प्रतिबंधित है, क्योंकि इसमें अधिकारियों का कथित तौर पर नकारात्मक चित्रण किया गया है।
हंसल मेहता अक्सर अपने विचारों को सोशल मीडिया पर साझा करते हैं। उन्होंने हाल ही में बांग्लादेश में हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिक्रिया दी, जिसके चलते शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़ दिया। इस संदर्भ में मेहता ने बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति पर अपनी चिंताओं को व्यक्त किया।
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Toggleधमकियों का सामना
मेहता ने बताया कि फिल्म ‘फराज’ की रिलीज को लेकर उन्हें कई प्रकार की धमकियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, “2016 में ढाका के होले आर्टिसन बेकरी पर हुए हमले पर आधारित फिल्म ‘फराज’ की रिलीज को लगभग 18 महीने तक रोका गया। उस समय बांग्लादेश के मिलनसार हाई कमिश्नर ने मुझसे मुलाकात की और मुझे बताया कि भारतीय कैबिनेट सचिवालय के स्रोतों द्वारा मुझे लगातार धमकियां दी जा रही हैं।”
हंसल मेहता ने यह भी कहा कि उन्हें पुलिस अधिकारियों और कथित इंटेलिजेंस सर्विस से कई कॉल आए। उन्हें पुलिस सुरक्षा भी दी गई थी, क्योंकि उन्हें आतंकवादी संगठनों से खतरों का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही, उन्होंने भारतीय अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाई का सामना भी किया।
‘फराज’ फिल्म की कहानी
फिल्म ‘फराज’ की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें बांग्लादेश में हुए एक आतंकवादी हमले के दौरान एक युवा लड़के की बहादुरी को दर्शाया गया है। फिल्म में जहान कपूर, आदित्य रावल, जूही बब्बर और आमिर अली ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। इसे भारतीय दर्शकों और आलोचकों ने काफी सराहा, लेकिन बांग्लादेश सरकार ने इसे वहां दिखाने की अनुमति नहीं दी।
हालांकि, ‘फराज’ ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनाई है और इसे कई फिल्म महोत्सवों में प्रदर्शित किया गया है। हंसल मेहता की यह फिल्म उन मुद्दों पर प्रकाश डालती है, जो समाज में प्रासंगिक हैं और यह दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति की बहादुरी और साहस कई लोगों की जिंदगी बदल सकती है।
हंसल मेहता की फिल्म ‘फराज’ न केवल एक संवेदनशील विषय पर बनी है, बल्कि यह उस कठिनाई को भी उजागर करती है जो फिल्म निर्माताओं को अपने विचारों और दृष्टिकोण को व्यक्त करने में सहन करनी पड़ती है। बांग्लादेश में हो रहे घटनाक्रम और मेहता के अनुभव इस बात का प्रमाण हैं कि कला और स्वतंत्रता का संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। ‘फराज’ की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और न्याय की लड़ाई हमेशा जारी रहनी चाहिए।